स्वप्नांविषयी थोड़ेसे

स्वप्न जेव्हा सत्यात येते
मन तेव्हा प्रश्न करते
मग सुख नेमके
कशात होते ?
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प्रत्याक्षाहुन प्रतिमा
नेहमीच उत्कट
सत्य नाही
स्वप्नंच मिळतात फुकट!
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एका  दीन-दुबळ्या  देशी
सारेच आहेत सुखी
कारण काय बरं ते?
साऱ्यांकडे स्वप्नांची उशी
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स्वप्नं विकून ते गरिबांना
सत्यात पैसे कमावतात
नकळत फसून गरीबच श्रीमंतांना
अधिक श्रीमंत करतात
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स्वप्नं दाखवूनच ते राज्य करतात
सामन्यांना लूट लूटतात
आणि तीच अपूर्ण स्वप्नं घेऊन
पुन्हा सत्तेत येतात
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रंगीबेरंगी स्वप्नांचा पूर
मृगजळच ते! खूप दूर
वेडया आशांचे आरसे
लखलखतात अजून
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कागदाचं एक पान